शुक्रवार, 29 मई 2009

गुरु नानक


गुरु नानक महान समाज-सुधारक और धर्मगुरु थे। उनका जन्म 15 अप्रैल 1469 को लाहोर के पास स्थित तलवंदी राय भोई नामक स्थान में एक खत्री परिवार में हुआ। उनकी माता थीं त्रिप्ता और पिता थे मेहता कालू। वे दोनों एक समृद्ध किसान के यहां काम करते थे। नानक इन दोनों की तीसरी संतान थे। आज नानक का जन्मस्थल नानकाना साहब के नाम से भी जाना जाता है। बचपन से ही उनमें ईश्वर-भक्ति कूट-कूटकर भरी थी। वे जगह-जगह जाकर लोगों को सन्मार्ग दिखाते थे। उन्होंने बंगाल, तिब्बत, दक्षिण भारत, श्री लंका, म्यान्मार (बर्मा), थाईलैंड, कांधार, तुर्की, बागदाद, मक्का-मदीना आदि की यात्रा की। उन्होंने लोगों को भगवत स्मरण की सीख दी। ईश्वर को वे वाहेगुरु के नाम से पुकारते थे।

नानक सिख धर्म के संस्थापक के रूप में अधिक प्रसिद्ध हैं, पर वे एक बहुमुखी प्रतिभावाले व्यक्ति थे। वे एक अच्छे कवि और दार्शनिक तो थे ही, पर सबसे बढ़कर वे एक उत्कृष्ट मानवप्रेमी थे। रबींद्रनाथ टागोर उन्हें समस्त मानवजाति का गुरु मानते थे।

नानक ने कहा है कि मनुष्य का मूल्यांकन उसके बाहरी तड़क-भड़क के आधार पर नहीं करना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण कसौटी है उसमें ईश्वर भक्ति का होना। हर व्यक्ति को दयावान, संतुष्ट, धीर और सत्यवादी बनना चाहिए। ईश्वर उन व्यक्तियों से प्रेम करते हैं जो जरूरतमंदों को भोजन खिलाते हैं और पहनने के लिए कपड़े देते हैं। सभी मनुष्य उच्च कुल के सदस्य हैं, कोई नीच कुल का नहीं है। बेकार के कर्मकांड और रीति-रिवाज ईश्वर-प्राप्ति में बाधा बनकर आते हैं। ईश्वर अरूप और सर्वव्यापी हैं। उनका स्मरण करना और उनका गुण गाना उन्हें प्राप्त करने का सबसे सरल तरीका है।

गुरु नानक ने स्पष्ट कहा था कि मैं ईश्वर नहीं हूं, उनका अवतार भी नहीं हूं। मैं केवल एक मसीहा हूं जो उनका संदेश फैला रहा है।

गुरु नानक ने सच्चे दिल से लोगों को धर्मोपदेश दिया। वे एक गर्वरहित व्यक्ति थे और उन्होंने अपने शिष्यों को भी गर्व त्यागने की सीख दी। वे सदाचार, न्याय और ईश्वर की महिमा के पक्षपाती थे। उन्होंने सभी मनुष्यों की समानता की प्रतिष्ठा की।

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