tag:blogger.com,1999:blog-4261533642186672024-03-13T12:37:07.023-07:00बाल जयहिंदीबच्चों के लिए पंचमेल सामग्री।बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायणhttp://www.blogger.com/profile/09013592588359905805noreply@blogger.comBlogger48125tag:blogger.com,1999:blog-426153364218667.post-43700740105981892972009-06-05T06:10:00.000-07:002009-06-05T06:41:56.317-07:00गुब्बारे से बनी कला कृतियांबच्चो, तुम्हें गुब्बारे प्रिय हैं, है न। तुमने तरह-तरह के गुब्बारे देखे होंगे। होली में भी गुब्बारों का उपयोग किया होगा। अब तुम यहां देखोगे, गुब्बारों का एक बिलकुल नया उपयोग। है न मजेदार चीज!<br /><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://3.bp.blogspot.com/_DmvSSAYa07o/SikfUDeDQRI/AAAAAAAAAOc/Q9kQR-cBivc/s1600-h/balloon-art1.png"><img style="cursor:pointer; cursor:hand;width: 294px; height: 400px;" src="http://3.bp.blogspot.com/_DmvSSAYa07o/SikfUDeDQRI/AAAAAAAAAOc/Q9kQR-cBivc/s400/balloon-art1.png" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5343836862240997650" /></a><br /><br />है न प्यारी यह गुब्बारे की मछली! और यह पहलवान, वह तो बिलकुल भीम लगता है!<br /><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://1.bp.blogspot.com/_DmvSSAYa07o/SikfONZ5wUI/AAAAAAAAAOU/EjXvrMHQJso/s1600-h/balloon-art2.png"><img style="cursor:pointer; cursor:hand;width: 308px; height: 400px;" src="http://1.bp.blogspot.com/_DmvSSAYa07o/SikfONZ5wUI/AAAAAAAAAOU/EjXvrMHQJso/s400/balloon-art2.png" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5343836761828737346" /></a><br /><br />ये लो माटरसाइकिल, इसमें तो आइना भी है!<br /><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://4.bp.blogspot.com/_DmvSSAYa07o/SikfJP8AVlI/AAAAAAAAAOM/uQJn3yV7la8/s1600-h/balloon-art3.png"><img style="cursor:pointer; cursor:hand;width: 360px; height: 277px;" src="http://4.bp.blogspot.com/_DmvSSAYa07o/SikfJP8AVlI/AAAAAAAAAOM/uQJn3yV7la8/s400/balloon-art3.png" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5343836676609300050" /></a><br /><br />और यह रही पीले बालों वाली गुड़िया, कितनी सुंदर है यह!<br /><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://1.bp.blogspot.com/_DmvSSAYa07o/SikfD_MSk-I/AAAAAAAAAOE/AGZq399y6oM/s1600-h/balloon-art4.png"><img style="cursor:pointer; cursor:hand;width: 267px; height: 400px;" src="http://1.bp.blogspot.com/_DmvSSAYa07o/SikfD_MSk-I/AAAAAAAAAOE/AGZq399y6oM/s400/balloon-art4.png" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5343836586214855650" /></a><br /><br />तुम भी बनाओ ऐसी कला कृतियां गुब्बारे से।बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायणhttp://www.blogger.com/profile/09013592588359905805noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-426153364218667.post-18107473739876406982009-06-04T20:35:00.000-07:002009-06-04T21:06:02.485-07:00आज पर्यावरण दिवस हैआज 5 जून है, यानी पर्यावरण दिवस।<br /><br />आज तुम्हें करना है ऐसा कोई काम जो पर्यावरण, प्रकृति, वन्यजीवन, वन आदि को फायदा पहुंचाए।<br /><br />क्या तुम सोच रहे हो, या रही हो, कि मैं क्या कर सकता हूं, या कर सकती हूं? मैं तो एक छोटा बच्चा, या बच्ची, ही हूं।<br /><br />क्या तुमने उस गिलहरी की कहानी सुनी है, जिसने समुद्र में पुल बांधने में श्री राम की मदद की थी? उसने यह नहीं सोचा, कि मैं क्या कर सकती हूं, मैं तो बस एक छोटी सी गिलहरी हूं, यहां तो अंगद, हनुमान, जांबवान, सुग्रीव आदि बड़े-बड़े योद्धा हैं, नल-नील आदि बड़े-बड़े इंजीनियर हैं, और विभीषण, लक्षमण आदि कुशल लोग हैं। वे सब कर लेंगे, मुझे बीच में पड़ने की कोई जरूरत नहीं।<br /><br />नहीं वह गिलहरी समुद्र में डुबकी लगाकर रेत में लोटी। फिर जहां पुल बन रहा था वहां जाकर अपने शरीर को झटकर उससे चिपके रेत को वहां गिराया। योगदान तुच्छ, पर महत्वपूर्ण था। उसके योगदान का मूल्य इसमें नहीं था कि कितने कण रेत उसने इस तरह पुल तक पहूंचाए, बल्कि इसमें था कि उसके मन में मदद करने की कितनी सच्ची भावना थी।<br /><br />आओ, तुम्हें एक और प्रेरक प्रसंग सुनाता हूं, इस बार हमारे बापू की। तुम जानते/ती ही हो कि वे आजादी की लड़ाई के लिए लोगों से चंदे वसूलते थे। उनकी सभा में जो भी जाता था, उनसे अपेक्षा की जाती थी कि वे कुछ-न-कुछ चंदा दें। ऐसी एक सभा में हजारों रुपए जमा किए गए। बड़े-बड़े सेठ, उद्योगपतियों, वकीलों, डाक्टरों आदि ने गांधी जी पर रुपए बरसाए। एक भिखारी भी उस सभा में आया था। उसके पास ज्याद पैसे न थे। फिर भी उसने दो-एक पैसे गांधी जी को दिए।<br /><br />बाद में जब गांधी जी सभा को संबोधित कर रहे थे, उन्होंने जिक्र किया तो उस भिखारी से मिले दो-एक पैसे का, न कि सेठों, उद्योगपतियों, वकीलों, डाक्टरों से मिले हजारों रुपए का। गांधी जी ने कहा, यदि धन्ना सेठ जिनके पास करोड़ों रुपए हैं, कुछ हजार रुपए मुझे दे दें, तो यह कोई बड़ी बात नहीं है। लेकिन उस भिखारी का दो-तीन पैसे देना बहुत बड़ी बात है। संभव है वह उसकी पूरे दिन की या कई दिनों की कमाई हो। उसे देने के बाद उसे उस रात भूखा रहना पड़ा हो। इसलिए उसने अपनी गाढ़ी कमाई मुझे देकर सेठों, उद्योगपतियों आदि से कहीं बड़ा बलिदान किया है, और इसलिए उसके पैसे का मूल्य भी कहीं ज्यादा है।<br /><br />तो अपनी तुच्छता या छुटता का ख्याल न करके, पर्यावरण को फायदा पहुंचानेवाला कोई काम कर डालो आज। कुछ सुझाव यहां दे रहा हूं - <br /><br />1. घर में पानी, बिजली, ईंधन आदि की बचत करने का प्रयास करो। घर के अन्य लोगों को भी इसके लिए प्रोत्साहन दो। कमरे से जाते समय लाइट, फैन आदि को बंद करो। टपकते नलों को ठीक कराओ। रसोईघर में खाना पकाते समय बर्तन को बंद रखने को कहो। घर में सब एक-साथ खाओ ताकि खाने को बारबार गरम न करना पड़े।<br /><br />2. घर में सब्जी आदि धोने के पानी से गमलों और बगीचे को सींचो।<br /><br />3. कागज, प्लास्टिक, बोतल आदि को इकट्ठा करके रद्दीवाले को बेचो।<br /><br />4. यदि सुविधा हो, तो घर के बगीचे में या अन्य किसी जगह पेड़ लगाओ। यदि नहीं, आस-पास लगे पेड़ों को पानी दो और उनकी देखभाल करो।<br /><br />5. दोस्तों में, आस पड़ोस के लोगों में पर्यावरणीय चेतना जगाने की कोशिश करो। मेरे एक अन्य ब्लोग <a href="http://kudaratnama.blogspot.com/2009/06/blog-post_5538.html">कुदरतनामा में पर्यावरण पर एक नाटक</a> का स्क्रिप्ट दिया गया है। दो-चार बच्चे मिलकर और टीचर, मां-बांप आदि की मदद लेकर इसे अपने स्कूल में, मुहल्ले में, नुक्कड़ पर मंचित करो। स्वयं में पर्यावरण पर लेख, कहानी, कविता, नाटक आदि लिखकर प्रकाशित करो।<br /><br />6. इंटरनेट, पुस्तकें, टीवी आदि से पर्यावरण, वन्यजीवन, पर्यावरणीय समस्याएं आदि के बारे में अधिकाधिक जानकारी संकलित करो, और इन समस्याओं का क्या समाधान हो सकता है, इसके बारे में गंभीरता से सोचो।<br /><br />7. कहीं पास में जाना हो, तो पैदल जाओ या साइकिल पर या बस-ट्रेन आदि से, न कि मोटरकार से या स्कूटर आदि से।<br /><br />8. बाजार जाते समय अपने पास कपड़े का थैला रखों और दुकानदारों से कहो कि वे सामन को प्लास्टिक के थैलों में न दें बल्कि आपके थैले में सीधे डालें।<br /><br />पर्यावरण दिवस के पर्व को सफल बनाओ।<br /><br />यदि तुम जानना चाहते/ती हो, कि पर्यावरण दिवस क्यों मनाया जाता है और उसकी शुरुआत कैसे हुई, तो मेरे ब्लोग <a href="http://kudaratnama.blogspot.com/2009/06/5.html">कुदरतनामा का यह लेख</a> पढ़ो।बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायणhttp://www.blogger.com/profile/09013592588359905805noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-426153364218667.post-23964406680468536142009-06-03T20:13:00.000-07:002009-06-03T20:14:52.556-07:00बाल कहानी : दानव और बकरेजंगल के पास एक गांव था। गांव के किनारे से एक नदी बहती थी। नदी पर एक पुल था। पुल के नीचे एक दानव रहता था।<br /><br />जंगल में तीन बकरे चर रहे थे। सबसे बड़े बकरे ने सबसे छोटे बकरे से कहा, "नदी के पार गांव के खेतों में खूब फल-सब्जी उगे हुए हैं। उनकी महक यहां तक आ रही है। जा पुल पर से नदी पार करके उन्हें खा आ।"<br /><br />छोटा बकरा पुल पार करने लगा। जब वह पुल के बीच तक पहुंच गया तो दानव पुल के ऊपर चढ़ आया और अपने बड़े-बड़े खांग और नाखून दिखाकर नन्हे बकरे को डराते हुए बोला, "मुझे बड़ी भूख लगी है। मैं तुझे खा जाऊंगा।"<br /><br />डर से कांपते हुए नन्हा बकरा बोला, "मुझे मत खाओ दानव। मैं बहुत छोटा हूं। मुझसे तुम्हारी भूख नहीं मिटेगी। मेरे दो बड़े दोस्त हैं। वे अभी इसी ओर आने वाले हैं। उन्हें खा लो।"<br /><br />दानव बड़े बकरों को खाने के लालच में आ गया। बोला, "अच्छा तू जा। मैं बड़े बकरों का इंतजार करूंगा।"<br /><br />नन्हा बकरा सिर पर पांव रखकर वहां से भागा और गांव के खेत में पहुंचकर ताजा फल-सब्जी खाने लगा।<br /><br />सबसे बड़े बकरे ने तब मंझले बकरे से कहा, "अब तू पुल पर से गांव की ओर जा।"<br /><br />मंझला बकरा पुल पार करने लगा। जब वह पुल के बीच पहुंचा तो दानव ऊपर चढ़ आया और अपने खांग और नाखून से उसे डराते हुए बोला, "मुझे बड़ी भूख लगी है। मैं तुझे खा जाऊंगा।"<br /><br />मझले बकरे ने कहा, "मुझे जाने दो दानव। मैं अभी छोटा ही हूं। मुझसे तुम्हारी भूख नहीं मिटेगी। अभी मेरा एक दोस्त आनेवाला है। वह मुझसे बहुत बड़ा है। उसे खा लो।"<br /><br />दानव बोला, "अच्छा तू जा।"<br /><br />मझला बकरा वहां से भागकर नन्हे बकरे के पास पहुंच गया। <br /><br />अब बड़ा बकरा पुल पार करने लगा। वह खूब मोटा और तगड़ा था। उसके चलने से पुल चरमरा उठा। उसके सींग लंबे और खूब नुकीले थे।<br /><br />जब वह पुल के बीच पहुंचा तो दानव एक बार फिर पुल के ऊपर चढ़ आया और अपने खांग और नाखून से उसे डराते हुए बोला, "मुझे बड़ी भूख लगी है। मैं तुझे अभी खा जाऊंगा।"<br /><br />पर बड़ा बकरा जरा भी नहीं डरा। उसने अपने अगले पांवों से जमीन कुरेदते हुए हुंकार भरी और सिर नीचा करके दानव के पेट पर अपने सींगों से जोर से प्रहार किया। दानव दूर नदी में जा गिरा। अब बड़ा बकरा इत्मीनान से पुल पार कर गया और अपने दोनों साथियों के पास पहुंचकर मनपसंद भोजन करने लगा।बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायणhttp://www.blogger.com/profile/09013592588359905805noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-426153364218667.post-32737885554100976032009-06-02T20:05:00.000-07:002009-06-02T20:06:18.014-07:00प्रेरक प्रसंग : आरुणी का साहसआरुणी ऋषि अरुणी का पुत्र था। ऋषि धौम्य के आश्रम में वह कृषिविज्ञान और पशुपालन से संबंधित विषयों का अध्ययन कर रहा था।<br /><br />आरुणी ने देखा कि आश्रम की जमीन ऊबड़-खाबड़ होने से वर्षाकाल में जमीन से बहते पानी के साथ बहुत सी मिट्टी भी बह जाती है। इससे इस जमीन से अधिक पैदावार नहीं मिल पाती। उसने अपने गुरु से इसकी चर्चा की। ऋषि धौम्य ने अपने शिष्य को सलाह दी कि वह जमीन को समतल करे और पानी के बहाव को रोकने के लिए जमीन को एक बंध से घेर दे। आरुणी पूरे उत्साह से इस काम में लग गया और कुछ ही समय में उसे पूरा कर दिया।<br /><br />जब बारिश आई तो ऋषि धौम्य ने आरुणी से कहा, "वत्स, वर्षा आरंभ हो गई है। मैं चाहता हूं कि तुम जाकर देख आओ कि जमीन के चारों ओर का बंध सही-सलामत है कि नहीं। यदि वह कहीं पर से टूटा हो तो उसकी मरम्मत कर दो।"<br /><br />गुरु की आज्ञा शिरोधार्य मानते हुए आरुणी खेतों का मुआयना करने निकल पड़ा। एक जगह बंध सचमुच टूटा हुआ था और वर्षा का पानी वहां से बह रहा था। बहते पानी के वेग से बंध का और हिस्सा भी टूटने लगा था। आरुणी ने देखा कि यदि जल्द ही कुछ न किया गया तो पूरे बंध के ही बह जाने का खतरा है। उसने आसपास की मिट्टी से बंध में पड़ी दरार को भरने की कोशिश की, पर जब इससे कुछ फायदा नहीं हुआ, तो वह स्वयं ही दरार के आगे लेट गया। उसके शरीर के दरार से लग जाने से पानी का बहना तो बंद हो गया, पर सारा कीचड़ उसके शरीर से चिपकने लगा। लेकिन आरुणी ने इसकी कोई परवाह नहीं की।<br /><br />बहुत समय बीतने पर भी जब आरुणी आश्रम नहीं लौटा तो ऋषि धौम्य को चिंता होने लगी। बरसात के रहते हुए भी कुछ शिष्यों को साथ लेकर वे आरुणी की खोज में निकल पड़े।<br /><br />आरुणी को कीचड़ से लथपथ जमीन पर लेटे देखकर वे दंग रह गए। पर उन्हें सारी बात समझने में देर नहीं लगी। उन्होंने आरुणी को गले से लगा लिया और उसकी प्रशंसा करते हुए बोले, "मैं तुम्हारे साहस और कर्तव्यनिष्ठा से बहुत प्रसन्न हूं। तुमने अपनी जान की बाजी लगाकर तुम्हें सौंपा गया काम पूरा किया। ऐसी बहादुरी इस दुनिया में बिरले ही देखने को मिलती है।"<br /><br />फिर ऋषि धौम्य के निर्देशन में सभी शिष्यों ने मिलकर बंध की दरार की मरम्मत की।बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायणhttp://www.blogger.com/profile/09013592588359905805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-426153364218667.post-53575887739788050792009-06-02T08:22:00.000-07:002009-06-02T08:25:14.874-07:00सिखों का पवित्र ग्रंथ<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://2.bp.blogspot.com/_DmvSSAYa07o/SiVESVa1TPI/AAAAAAAAAL0/mx61GcnYIFw/s1600-h/guru+granth+sahib.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 400px; height: 291px;" src="http://2.bp.blogspot.com/_DmvSSAYa07o/SiVESVa1TPI/AAAAAAAAAL0/mx61GcnYIFw/s400/guru+granth+sahib.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5342751614722985202" /></a><br />सिखों का पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहब है। उसमें सिक्खों के सभी दस गुरुओं और अनेक अन्य संतों की रचनाएं संकलित की गई हैं। इन संतों में हिंदू और मुसलमान दोनों शामिल हैं। सिक्ख अपने गुरुओं के अथवा भगवान के चित्र, मूर्ति आदि प्रदर्शित नहीं करते। उनके देवालयों में, जिन्हें गुरुद्वारा कहा जाता है, गुरु ग्रंथ साहब ही प्रतिष्ठित रहता है।बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायणhttp://www.blogger.com/profile/09013592588359905805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-426153364218667.post-42984875836645060172009-06-02T02:42:00.001-07:002009-06-02T02:43:15.072-07:00दुनिया का सबसे शक्तिशाली जीव<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://2.bp.blogspot.com/_DmvSSAYa07o/SiT0KFxjqCI/AAAAAAAAALs/n-V9IYTD7Bg/s1600-h/snail.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 250px; height: 190px;" src="http://2.bp.blogspot.com/_DmvSSAYa07o/SiT0KFxjqCI/AAAAAAAAALs/n-V9IYTD7Bg/s400/snail.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5342663512154155042" /></a><br />दुनिया का सबसे शक्तिशाली जीव न हाथी है न बैल न घोड़ा। वह है तुच्छ समझा जानेवाला घोंघा। घोंघा स्वयं 100 ग्राम से भी कम भारी होता है, पर वह अपने वजन से 400 गुना अधिक भारी वस्तुओं को खींच सकता है। पर उसकी रफ्तार बहुत ही धीमी होती है, लगभग 5 मीटर प्रति घंटा।बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायणhttp://www.blogger.com/profile/09013592588359905805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-426153364218667.post-80584111194300763962009-06-01T19:51:00.000-07:002009-06-01T19:55:28.063-07:00बाल कहानी : जादुई रंग बक्सावसुंधरा का पांचवां जनम दिन था। उसके नानाजी उसके लिए एक तोहफा लाए थे। वह चमकीले कागज में लिपटा था और लाल रिबन से बंधा था।<br /><br />वसुंधरा ने तोहफा नानाजी से लिया और बड़े कुतूहल से उसे खोलने लगी। वह एक सुंदर रंग बक्सा था।<br /><br />नानाजी ने कहा, "बेटा यह एक खास तरह का रंग बक्सा है, जैसा कि तुम्हें जल्द मालूम हो जाएगा।"<br /><br />वसुंधरा बहुत ही खुश हुई। उसे चित्र बनाना और उनमें रंग भरना बेहद पसंद था। "ओह नानाजी, आप कितने अच्छे हैं!" कहकर वह अपने नानाजी से लिपट गई। नानाजी मुसकुरा उठे।<br /><br />वसुंधरा ने कागज पर पेंसिल से तितली का चित्र बनाया और रंग बक्सा खोलकर तितली के पंखों पर तरह-तरह के रंग भरने लगी। जब चित्र पूरा हो गया तो वसुंधरा थोड़ा पीछे हटकर चित्र को निहारने लगी। वह अभी चित्र को परख ही रही थी कि तितली ने अपने सुंदर पंख खोले और कागज से उड़ गई। थोड़ा इधर-उधर भटककर वह बगीचे के एक फूल पर जा बैठी। यह देखकर वसुंधरा पहले तो बहुत चौंकी। पर तभी उसे नानाजी की बात याद आई कि रंग बक्सा खास प्रकार का है। वह शायद जादुई रंग बक्सा था। वसुंधरा सब समझ गई।<br /><br />अब वसुंधरा ने एक सुंदर रंग-बिरंगी चिड़िया का चित्र बनाया। चित्र पूरा होते ही चिड़िया चीं-चीं करके बोल उठी। अपने नन्हें पंखों को थोड़ा फड़फड़ाकर वह पहले वसुंधरा के सिर पर बैठी फिर खिड़की से बाहर उड़ गई। इस बार वसुंधरा जरा भी नहीं चौंकी। उसे पता था कि चिड़िया ठीक वैसा ही करेगी।<br /><br />इसके बाद वसुंधरा ने गिलहरी, खरगोश, मेंढ़क आदि के चित्र बनाए। वे सब कागज से जिंदा होकर बगीचे में आ गए और वहां कूदने, फुदकने और बोलने लगे। उन्हें देखकर वसुंधरा बहुत ही प्रसन्न हुई।बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायणhttp://www.blogger.com/profile/09013592588359905805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-426153364218667.post-3976439370489431912009-06-01T07:02:00.000-07:002009-06-01T07:03:44.297-07:00बैंक का स्थानांतरणअमेरिका की एक रियासत का नाम डकोटा है। वहां पिछली सदी के शुरू के वर्षों में एक बैंक था। उसे वहां से उखाड़ कर 15 मील दूर एक दूसरी जगह पर रख दिया गया. बैंक की इमारत उठाकर पहले बड़ी-बड़ी गाड़ियों पर रखी गई. फिर वे गाड़ियां बेलनों पर चढ़ाई गईं। गाड़ियों में आगे और दाहिने बाएं बहुत से घोड़े जोत दिए गए। बस उन्होंने खींच कर बैंक को इच्छित स्थान पर पहुंचा दिया। बैंक की इमारत खाली नहीं थी। उसकी चीज-वस्तु सब उसी के भीतर थी। यही नहीं, बल्कि उसके कुछ क्रमचारी भी यह तमाशा देखने के लिए उसके भीतर थे।बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायणhttp://www.blogger.com/profile/09013592588359905805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-426153364218667.post-21536181378787497902009-06-01T03:23:00.000-07:002009-06-01T03:26:40.922-07:00हाथियों के लिए पेंशन<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://3.bp.blogspot.com/_DmvSSAYa07o/SiOsyT808lI/AAAAAAAAALc/3qmWPsHiyug/s1600-h/Thrippunithura-Elephant6_crop.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 273px; height: 400px;" src="http://3.bp.blogspot.com/_DmvSSAYa07o/SiOsyT808lI/AAAAAAAAALc/3qmWPsHiyug/s400/Thrippunithura-Elephant6_crop.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5342303563340378706" /></a><br />वन विभाग के साथ काम कर रहे हाथियों को अब पेंशन मिलेगा। जब वे सेवानिवृत्त हो जाएंगे, उन्हें मृत्यु पर्यंत गन्ना, केला, आटा और चारा उपलब्ध कराया जाएगा। <br /><br />उप अरण्यपाल श्री अतिबल सिंह के अनुसार इससे पहले हाथियों के सेवानिवृत्त होने का कोई उम्र नहीं निश्चित था। वे लगभग 10 साल की उम्र से काम करने लगते थे। पर अब यदि हाथियों की देखरेख से जुड़े किसी भी अधिकारी को लगे कि हाथी कमजोर और बूढ़ा हो गया है और उससे काम करते नहीं बनता, तो वह उसे रिटायर कर सकता है।<br /><br />नए नियमों में गर्भिणी हथिनियों के लिए दो वर्ष के मेटेर्निटी लीव की व्यवस्था भी की गई है।बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायणhttp://www.blogger.com/profile/09013592588359905805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-426153364218667.post-57888970014635199212009-05-30T22:40:00.000-07:002009-05-30T22:41:19.941-07:00बीमारों के लिए घड़ीम्युनिच के एक अध्यापक ने एक बार बीमारों के लिए एक घड़ी बनाई जिसके पीछे बिजली का एक बल्ब लगा रहता था। यह बल्ब तार के द्वारा बीमार की चारपाई से जुड़ा होता था। चारपाई वाले तार के छोर में एक स्विच होता था। जब बीमार वक्त देखना चाहता था, तब वह उस स्विच को दबाता था। दबाते ही बल्ब जल उठता था और घड़ी की छाया ऊपर छत पर पड़ती थी। छाया में घंटे और मिनट के कांटे और अंक के निशान बढ़े हुए आकार में दिखाई पड़ते थे। उसे देखकर रोगी बिना गर्दन टेढ़ी किए अपनी चारपाई पर लेटे-लेटे ही वक्त मालूम कर सकता था।बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायणhttp://www.blogger.com/profile/09013592588359905805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-426153364218667.post-10982692260616880752009-05-29T21:09:00.001-07:002009-05-29T21:15:15.587-07:00गुरु नानक<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://1.bp.blogspot.com/_DmvSSAYa07o/SiCxo45nI5I/AAAAAAAAAKw/Wpu1u_SZgeo/s1600-h/guru_nanak_2.png"><img style="float:left; margin:10px 15px 10px 20px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 225px; height: 278px;" src="http://1.bp.blogspot.com/_DmvSSAYa07o/SiCxo45nI5I/AAAAAAAAAKw/Wpu1u_SZgeo/s400/guru_nanak_2.png" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5341464474088317842" /></a><br />गुरु नानक महान समाज-सुधारक और धर्मगुरु थे। उनका जन्म 15 अप्रैल 1469 को लाहोर के पास स्थित तलवंदी राय भोई नामक स्थान में एक खत्री परिवार में हुआ। उनकी माता थीं त्रिप्ता और पिता थे मेहता कालू। वे दोनों एक समृद्ध किसान के यहां काम करते थे। नानक इन दोनों की तीसरी संतान थे। आज नानक का जन्मस्थल नानकाना साहब के नाम से भी जाना जाता है। बचपन से ही उनमें ईश्वर-भक्ति कूट-कूटकर भरी थी। वे जगह-जगह जाकर लोगों को सन्मार्ग दिखाते थे। उन्होंने बंगाल, तिब्बत, दक्षिण भारत, श्री लंका, म्यान्मार (बर्मा), थाईलैंड, कांधार, तुर्की, बागदाद, मक्का-मदीना आदि की यात्रा की। उन्होंने लोगों को भगवत स्मरण की सीख दी। ईश्वर को वे वाहेगुरु के नाम से पुकारते थे। <br /><br />नानक सिख धर्म के संस्थापक के रूप में अधिक प्रसिद्ध हैं, पर वे एक बहुमुखी प्रतिभावाले व्यक्ति थे। वे एक अच्छे कवि और दार्शनिक तो थे ही, पर सबसे बढ़कर वे एक उत्कृष्ट मानवप्रेमी थे। रबींद्रनाथ टागोर उन्हें समस्त मानवजाति का गुरु मानते थे।<br /><br />नानक ने कहा है कि मनुष्य का मूल्यांकन उसके बाहरी तड़क-भड़क के आधार पर नहीं करना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण कसौटी है उसमें ईश्वर भक्ति का होना। हर व्यक्ति को दयावान, संतुष्ट, धीर और सत्यवादी बनना चाहिए। ईश्वर उन व्यक्तियों से प्रेम करते हैं जो जरूरतमंदों को भोजन खिलाते हैं और पहनने के लिए कपड़े देते हैं। सभी मनुष्य उच्च कुल के सदस्य हैं, कोई नीच कुल का नहीं है। बेकार के कर्मकांड और रीति-रिवाज ईश्वर-प्राप्ति में बाधा बनकर आते हैं। ईश्वर अरूप और सर्वव्यापी हैं। उनका स्मरण करना और उनका गुण गाना उन्हें प्राप्त करने का सबसे सरल तरीका है।<br /><br />गुरु नानक ने स्पष्ट कहा था कि मैं ईश्वर नहीं हूं, उनका अवतार भी नहीं हूं। मैं केवल एक मसीहा हूं जो उनका संदेश फैला रहा है।<br /><br />गुरु नानक ने सच्चे दिल से लोगों को धर्मोपदेश दिया। वे एक गर्वरहित व्यक्ति थे और उन्होंने अपने शिष्यों को भी गर्व त्यागने की सीख दी। वे सदाचार, न्याय और ईश्वर की महिमा के पक्षपाती थे। उन्होंने सभी मनुष्यों की समानता की प्रतिष्ठा की।बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायणhttp://www.blogger.com/profile/09013592588359905805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-426153364218667.post-14683173051550278232009-05-29T20:13:00.001-07:002009-05-29T20:13:59.424-07:00दुनिया का सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित डाक घरसिक्किम में स्थित 172114 पिन कोड क्षेत्र का डाक घर दुनिया भर में सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित डाक घर है। वह 15,500 फुट (4700 मीटर से अधिक) ऊंचाई पर स्थित है।बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायणhttp://www.blogger.com/profile/09013592588359905805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-426153364218667.post-90844446536162280162009-05-28T19:27:00.000-07:002009-05-28T19:28:55.845-07:00पंचतंत्र की कहानी<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://1.bp.blogspot.com/_DmvSSAYa07o/Sh9IWBjThKI/AAAAAAAAAJo/7l7aikNeJZk/s1600-h/panchatantracover.png"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 265px; height: 400px;" src="http://1.bp.blogspot.com/_DmvSSAYa07o/Sh9IWBjThKI/AAAAAAAAAJo/7l7aikNeJZk/s400/panchatantracover.png" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5341067226295534754" /></a><br />अमरशक्ति नाम का एक राजा था। बहुशक्ति, उग्रशक्ति और अनंतशक्ति नाम के उसके तीन पुत्र थे। वे बड़े मूर्ख थे। उनको पढ़ाने के लिए अमरशक्ति ने अनेक उपाय किए पर वे न पढ़ सके। इस पर विष्णुशर्मा नामक एक नीति-कुशल पंडित ने उन्हें छह महीने में नीतिज्ञ कर देने का राजा को वचन दिया और मित्र-भेद, मित्र-संप्राप्ति, काकोलूकीय, लब्धप्रकाश और अपरीक्षित--ये पंचतंत्र पढ़ाकर उन महामूर्खों को पूर्ण पंडित बना दिया।<br /><br />पंचतंत्र दुनिया के उन थोड़े पुस्तकों में से एक है जिनका प्राचीन काल में ही यूरोप की प्रायः तमाम भाषाओं में अनुवाद हो गया था। इसका सबसे पहला अनुवाद छठी शताब्दी में फारसी में हुआ। फारसी से अरबी भाषा में इसका अनुवाद हुआ। अरबी से सन 1080 के लगभग इसका यूनानी भाषा में अनुवाद हुआ। फिर यूनानी से इसका उल्था लैटिन भाषा में पसिनस नामक व्यक्ति ने किया। अरब अनुवाद का एक उल्था स्पेन की भाषा में सन 1251 के लगभग प्रकाशित हुआ। जर्मन भाषा में पहला अनुवाद 15वीं शताब्दी में हुआ और उससे ग्रंथ का अनुवाद यूरोप की सब भाषाओं में हो गया।बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायणhttp://www.blogger.com/profile/09013592588359905805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-426153364218667.post-4924264967774693742009-05-27T19:42:00.000-07:002009-05-27T19:50:39.591-07:00बाल उपन्यास - ओस का अद्भुत जादूगर - फ्रैंक बौम - 3(<a href="http://baljaihindi.blogspot.com/2009/05/2_19.html">पिछले अंक</a> में तुमने पढ़ा कि डोरोथी तूफान द्वारा उड़ाया जाकर मुंछकिनों के देश में आ गिरती है। उसके मकान के नीचे पूर्वी दिशा की कुटिल जादूगरनी आ जाती है और इस तरह उस जादूगरनी का अंत हो जाता है। अब आगे पढ़ो।)<br /><br /><h2>2. मुंछकिनों से बातचीत - 2</h2><br />"वह इतनी बूढ़ी थी कि उसका शरीर धूप में उड़ गया।" बूढ़ी औरत ने समझाया। "अब उसका अंत हो गया है। लेकिन उसके चांदी के जूते तुम्हारे हो गए हैं। तुम उन्हें पहन सकती हो।" वह आगे बढ़ी और नीचे झुककर चांदी के दोनों जूते उठा लिए और उन पर से मिट्टी झाड़कर उन्हें डोरोथी को दे दिया।<br /><br />"उत्तर की जादूगरनी को अपने इन चांदी के जूतों पर बड़ा गर्व था" एक मुंछकिन ने कहा, "उनमें कोई जादुई शक्ति छिपी है, पर हम नहीं जानते कि वह क्या है।"<br /><br />डोरोथी ने उन जूतों को घर के अंदर ले जाकर मेज पर रख दिया और फिर बाहर आकर मुंछकिनों से बोली, "मैं अपने चाचा-चाची के पास लौटना चाहती हूं क्योंकि मुझे पता है कि उन्हें मेरे बारे में चिंता हो रही होगी। वहां पहुंचने में तुम लोग मेरी मदद करोगे?"<br /><br />मुंछकिन और जादूगरनी एक-दूसरे को देखने लगे और फिर डोरोथी को देखकर उन्होंने अफसोस से सिर हिलाया।<br /><br />एक मुंछकिन ने कहा, "पूर्वी दिशा में एक विशाल रेगिस्तान है। कोई भी उसे पार नहीं कर सकता।"<br /><br />दूसरे ने कहा, "दक्षिण में भी यही रेगिस्तान है, क्योंकि मैं वहां गया हूं। दक्षिण में क्वाडलिंगों का देश है।"<br /><br />तीसरे ने कहा, "मैंने सुना है कि पश्चिम में भी यही रेगिस्तान है। उस देश में विंकी लोग रहते हैं, जिनपर पश्चिम की दुष्ट जादूगरनी राज करती है। यदि तुम उनके देश से गुजरोगी तो वह दुष्ट जादूगरनी तुम्हें अपना गुलाम बना लेगी।"<br /><br />तब बूढ़ी जादूगरनी ने कहा, "और रही उत्तर की बात, वह मेरा ही इलाका है। उसके किनारे भी यही रेगिस्तान है, जो ओस के देश को घेरे हुए है। बेटी, मुझे अफसोस है कि तुम्हें अब हमारे ही बीच रहना होगा।"<br /><br />यह सुनकर डोरोथी धीरे-धीरे सुबकने लगी क्योंकि उसे इन विचित्र लोगों के बीच बड़ा अकेलापन महसूस हो रहा था। उसके आंसुओं को देखकर शायद मुंछकिनों को भी बड़ी पीड़ा हुई, क्योंकि तुरंत ही उन्होंने भी अपने-अपने रूमाल निकाल लिए और वे भी जोर-जोर से सिसकने लगे। रही जादूगरनी की बात, तो उसने अपनी टोपी उतार ली और उसकी नोक को अपनी नाक के सिरे पर रखकर उसे ऊपर टिकाए रखते हुए गंभीर आवाज में बोली, "एक, दो, तीन!" तुरंत ही वह टोपी एक स्लेट में बदल गई। उसमें सफेद चोक से बड़े-बड़े अक्षरों में यह संदेश लिखा हुआ था, "डोरोथी पन्ना नगरी जाए।"<br /><br />बूढ़ी औरत ने स्लेट को अपनी नाक से उतारकर उस पर लिखे संदेश को ध्यान से पढ़ा और फिर डोरोथी से पूछा,<br /><br />"बेटी क्या तुम्हारा नाम डोरोथी है?"<br /><br />"हां" डोरोथी ने अपने आंसू पोंछते हुए उत्तर दिया।<br /><br />"तब तुम्हें पन्ना नगरी जाना होगा। शायद ओस तुम्हारी मदद करे।"<br /><br />"यह नगरी कहां है?" डोरोथी ने पूछा।<br /><br />"वह इस देश के ठीक मध्य में है। उस पर ओस का जादूगर राज करता है, वही ओस जिसका मैंने कुछ समय पहले जिक्र किया था।"<br /><br />"क्या वह एक अच्छा आदमी है?" डोरोथी ने चिंता के साथ पूछा।<br /><br />"वह एक अच्छा जादूगर है। आदमी है या नहीं, यह मैं नहीं कह सकती, क्योंकि मैंने उसे कभी नहीं देखा है।"<br /><br />"मैं वहां तक कैसे पहुंच सकती हूं?" डोरोथी ने पूछा।<br /><br />"तुम्हें चल कर ही जाना होगा। रास्ता लंबा है। उसके कुछ हिस्से बहुत ही सुहावने हैं, पर कुछ अंधियाले और डरावने भी हैं। पर तुम्हें संकट से बचाने के लिए मैं अपनी सारी जादुई शक्ति का प्रयोग करूंगी।"<br /><br />"क्या तुम मेरे साथ नहीं चल सकतीं?" डोरोथी ने दयनीय स्वर में कहा। वह उसे अपना एकमात्र मित्र समझने लगी थी।<br /><br />"नहीं मैं नहीं चल सकती," बुढ़िया ने कहा, "पर मैं तुम्हें अपना चुंबन दूंगी और उत्तर की जादूगरनी द्वारा चूमे गए व्यक्ति को नुक्सान पहुंचाने की हिम्मत कोई नहीं करेगा।"<br /><br />यह कहकर वह डोरोथी के पास आई और उसके माथे को धीमे से चूम लिया। जहां उसके होंठ डोरोथी के माथे से लगे वहां एक चमकीला निशान बन गया, जैसा कि डोरोथी को बाद में पता चला।<br /><br />"पन्ना नगरी की ओर जाने वाली सड़क पीली ईंटों से बनी है।" उस जादूगरनी ने कहा, "इसलिए तुम उसे आसानी से खोज सकोगी। जब तुम ओस देश में पहुंचो, वहां के जादूगर से बिलकुल नहीं डरना। उसे तुम्हारी समस्या बताओ, वह तुम्हारी मदद करेगा। अलविदा, मेरी बेटी।"<br /><br />तीनों मुंछकिनों ने डोरोथी के सामने झुककर प्रणाम किया और उसकी यात्रा की सफलता की कामना करते हुए वे पेड़ों के बीच से लौट चले। जादूगरनी ने डोरोथी को देखकर प्यार से सिर हिलाया और अपनी बाईं ऐड़ी पर तीन बार घूमी जिससे वह तुरंत ही हवा में गायब हो गई। यह देखकर टोटो आश्चर्यचकित रह गया और काफी देर तक भौंकता रहा। बुढ़िया की मौजूदगी में वह उससे इतना सहम गया था कि जरा सी रिरियाहट निकालने की उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी।<br /><br />पर चूंकि डोरोथी जानती थी कि वह एक जादूगरनी है, इसलिए उसने मन में यही सोचा था कि वह ठीक इसी प्रकार गायब होगी। अतः वह बिलकुल भी चकित नहीं हुई।<br /><br />(... जारी)बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायणhttp://www.blogger.com/profile/09013592588359905805noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-426153364218667.post-55949377773484911702009-05-26T19:33:00.000-07:002009-05-26T19:41:45.228-07:00प्रेरक प्रसंग : रंग में कुछ नहीं रखा<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://4.bp.blogspot.com/_DmvSSAYa07o/ShyoSynW_5I/AAAAAAAAAIo/n3IY9nmaUCc/s1600-h/balloons2.png"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;width: 179px; height: 296px;" src="http://4.bp.blogspot.com/_DmvSSAYa07o/ShyoSynW_5I/AAAAAAAAAIo/n3IY9nmaUCc/s400/balloons2.png" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5340328298932535186" /></a><br /><br />अमरीका में काले लोगों पर बहुत अत्याचार होते हैं। उन्हें समाज में आगे ब़ढ़ने के उतने अवसर नहीं मिलते जितने गोरों को। <br /><br />एक बार अमरीका के एक छोटे शहर में मेला लगा। उस शहर में काले-गोरे दोनों रहते थे।<br /><br />मेले में अनेक आकर्षण थे। उनमें से एक था रंग-बिरंगे गुब्बारे बेचनेवाला एक व्यक्ति। हीलियम गैस से भरे आकाश में खूब ऊंचा उठनेवाले रंग-बिरंगे गुब्बारों के लिए उसके पास हमेशा बच्चों की भीड़ लगी रहती थी। जब कभी बिक्री कम होने लगती, वह एक गुब्बारे को खोलकर हवा में उड़ा देता। उसे उंचाई पकड़ते देखकर बच्चे उत्साहित हो उठते और उसके पास फिर भीड़ जुटने लगती।<br /><br />एक काला बच्चा यह सब बड़े ध्यान से देख रहा था। यकायक वह गुब्बारेवाले के पास सरक आया और बोला, "काका, मैं आपसे एक सवाल पूछना चाहता हूं।"<br /><br />गुब्बारेवाले ने उसे प्रोत्साहित करते हुए कहा, "हां बेटे, कहो, क्या जानना चाहते हो?"<br /><br />बच्चे ने कहा,"यही कि काले रंग का गुब्बारा भी आसमान पर ऊंचा चढ़ेगा?"<br /><br />उस मांसूस बच्चे का सवाल सुनकर गुब्बारेवाले की आंखें नम हो उठीं।<br /><br />उसने बड़े प्रेम से बच्चे को समझाया, "बेटे गुब्बारा हो या मनुष्य, उसके ऊपर उठने से उसके रंग का कोई संबंध नहीं है। उसके अंदर जो चीज है, वही उसे ऊपर उठाता है।"बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायणhttp://www.blogger.com/profile/09013592588359905805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-426153364218667.post-14347435712312650522009-05-25T19:35:00.000-07:002009-05-25T19:53:05.457-07:00बूझो तो जानें - उत्तर 4<div style="text-align: center;"><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://4.bp.blogspot.com/_DmvSSAYa07o/ShqMdA0HUGI/AAAAAAAAAHQ/558m0liwl-Q/s1600-h/parliament2.jpg"><img style="margin: 0px auto 10px; display: block; text-align: center; cursor: pointer; width: 400px; height: 119px;" src="http://4.bp.blogspot.com/_DmvSSAYa07o/ShqMdA0HUGI/AAAAAAAAAHQ/558m0liwl-Q/s400/parliament2.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5339734738263822434" border="0" /></a><br /></div><br />संसद भवन में 247 खंभे हैं। इस गोल इमारत का निर्माण 1927 में हर्बेट बेकर द्वारा किया गया था। उसमें तीन अर्धवृत्ताकार कक्ष हैं – लोक सभा, राज्य सभा और पुस्तकालय। उसकी गुंबद की ऊंचाई 27.4 मीटर है। संसद भवन 2.02 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला है। अब देखो संसद भवन के कुछ और चित्र।<br /><br /><div style="text-align: center;"><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://3.bp.blogspot.com/_DmvSSAYa07o/ShtWb10WWlI/AAAAAAAAAH4/-FEgjEveLJA/s1600-h/Indian+Parliament+building.jpg"><img style="margin: 0px auto 10px; display: block; text-align: center; cursor: pointer; width: 320px; height: 170px;" src="http://3.bp.blogspot.com/_DmvSSAYa07o/ShtWb10WWlI/AAAAAAAAAH4/-FEgjEveLJA/s400/Indian+Parliament+building.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5339956819480959570" border="0" /></a>(ऊपर से दखने पर संसद भवन यों दिखता है।)<br /></div><br /><br /><br /><div style="text-align: center;"><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://4.bp.blogspot.com/_DmvSSAYa07o/ShtW2rYgD7I/AAAAAAAAAIA/TUaZnjjVb0o/s1600-h/loksabha.jpg"><img style="margin: 0px auto 10px; display: block; text-align: center; cursor: pointer; width: 330px; height: 197px;" src="http://4.bp.blogspot.com/_DmvSSAYa07o/ShtW2rYgD7I/AAAAAAAAAIA/TUaZnjjVb0o/s400/loksabha.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5339957280536268722" border="0" /></a>(लोक सभा।)<br /><br /><br /></div><br /><div style="text-align: center;"><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://3.bp.blogspot.com/_DmvSSAYa07o/ShtZEHwNEXI/AAAAAAAAAII/RJ-lBHrhZ2c/s1600-h/rajyasabha.jpg"><img style="margin: 0px auto 10px; display: block; text-align: center; cursor: pointer; width: 329px; height: 196px;" src="http://3.bp.blogspot.com/_DmvSSAYa07o/ShtZEHwNEXI/AAAAAAAAAII/RJ-lBHrhZ2c/s400/rajyasabha.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5339959710513434994" border="0" /></a>(राज्य सभा।)<br /></div>बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायणhttp://www.blogger.com/profile/09013592588359905805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-426153364218667.post-64590020385317392872009-05-25T05:14:00.000-07:002009-05-25T05:18:25.628-07:00बूझो तो जानें - 4<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://4.bp.blogspot.com/_DmvSSAYa07o/ShqMdA0HUGI/AAAAAAAAAHQ/558m0liwl-Q/s1600-h/parliament2.jpg"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;width: 400px; height: 119px;" src="http://4.bp.blogspot.com/_DmvSSAYa07o/ShqMdA0HUGI/AAAAAAAAAHQ/558m0liwl-Q/s400/parliament2.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5339734738263822434" /></a><br />बता सकते हो, संसद भवन में कितने खंभे हैं?बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायणhttp://www.blogger.com/profile/09013592588359905805noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-426153364218667.post-1553684334146698302009-05-24T20:34:00.000-07:002009-05-24T20:40:21.796-07:00कहानी : ननकी और आदमखोर शेरवगडावर नामक गांव में एक लड़की रहती थी ननकी। इस गांव के पास से पोसी नदी बहती है। ननकी को इस नदी से बड़ा लगाव था। जब वह स्कूल जाती तो नदी के किनारे-किनारे चलती हुई नदी की कलकल बहती धारा, उसमें उछलती-कूदती मछलियों और बगुलों को देखती जाती। नदी के दोनों ओर बड़े-बड़े फलदार वृक्ष लगे थे। कभी-कभी वह उनके फल तोड़कर खा भी लेती। स्कूल से घर लौटते वक्त वह नदी के सुनसान किनारे पर पहुंचकर अपने बस्ते को किसी पेड़ की खोल में रख देती और नदी में उतरकर हाथ-मुंह धोती या उसके किनारे बैठकर अपने विचारों में खो जाती।<br /><br />एक दिन स्कूल से लौटते वक्त वह रोज की भांति धीमे-धीमे नदी के किनारे-कनारे चली जा रही थी। तभी उसे एक हल्की सी आवाज सुनाई दी, “ननकी मुझे बचा लो।” उसने इधर-उधर सिर घुमाकर देखा। नदी के ऊपर तक बढ़ आई एक डाली पर एक मछली फंसी हुई थी। उसी ने पुकारा था। नदी में कूद-कूदकर खेलते समय वह शायद पानी के ऊपर स्थित डाली में उलझ गई थी।<br /><br />ननकी तुरंत डाली पर चढ़ गई और मछली को छुड़ाकर दुबारा पानी में डाल दिया। पानी में पहुंचते ही मछली सुंदर स्त्री में बदल गई। वह कोई साधरण मछली नहीं, बल्कि जलपरि थी। उसने ननकी से कहा, "बेटी तुमने मेरी जान बचाई है। इसके बदले मैं तुम्हें एक विद्या सिखाऊंगी।" और उसने ननकी को एक विद्या सिखा दी। वह इस तरह की थी कि यदि ननकी किसी को देखकर कह दे "चिपक जाओ" तो तुरंत उस प्राणी के हाथ-पैर चिपक जाते थे। वे फिर तभी खुलते थे जब ननकी यह कह दे "खुल जाओ"। इसके बाद परी अदृश्य हो गई और ननकी भी घर की ओर चलने लगी।<br /><br />रास्ते में उसे एक बगुला दिखाई दिया जो एक मेंढ़क को पकड़ने ही वाला था। ननकी ने सोचा कि परि ने जो विद्या सिखाई है, उसे आजमाकर देखना चाहिए, तभी यह मालूम हो सकेगा कि वह काम करती है कि नहीं। उसने बगुले को देखकर कहा, "चिपक जाओ"। तुरंत बगुले की चोंच, पैर और पंख चिपक गए और हिलने-डुलने में असमर्थ हो गए। इसका लाभ उठाकर मेंढ़क बच निकल गया। परि द्वरा सिखाई गई विद्या को काम करते देखकर ननकी बहुत खुश हुई। उसने "खुल जाओ" कहकर बगुले को छुड़ाया और आगे बढ़ गई।<br /><br />आगे चलकर उसे एक कौआ दिखाई दिया जो एक गिलहरी को पकड़ रहा था। ननकी ने तुरंत कौए को देखकर कहा, "चिपक जाओ"। कौआ मूर्तिवत हो गया और गिलहरी भाग गई। ननकी ने "खुल जाओ" कहकर कौए को छुड़ाया।<br /><br />जब ननकी गांव पहुंची तो उसने देखा कालू कुत्ता चंपा मौसी की बिल्ली के पीछे पड़ा हुआ है। उसने तुरंत कालू को देखकर "चिपक जाओ" कहा तो कालू के हाथ-पैर सब चिपक गए। वह जमीन पर निस्सहाय होकर गिर पड़ा और "कूं-कूं-कूं" करने लगा। बिल्ली जब एक घर की छत पर चढ़ गई तो ननकी ने कालू को छोड़ दिया।<br /><br />बहुत जल्द गांव भर में ननकी की इस अद्भुत विद्या की खबर फैल गई। सभी उससे दुश्मनी करने से डरने लगे। गांव भर के लड़के-लड़की अब उसके पीछे-पीछे चलने और जैसा वह कहती वैसा ही करने लगे।<br /><br />एक दिन उस गांव के पास के जंगलों में एक आदमखोर शेर आ गया। उसने आसपास के गांवों के कई आदमियों को मार कर खा लिया। ननकी के गांव वगडावर के कुछ निवासी भी उसके शिकार हुए। तब सब लोगों ने मिलकर ननकी से कहा कि वह इस बाघ को पकड़ने में मदद करे।<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://2.bp.blogspot.com/_DmvSSAYa07o/ShoSWUmEJxI/AAAAAAAAAGo/66XYyh_SHIc/s1600-h/2tiger.jpg"><img style="margin: 10px auto 10px; display: block; text-align: left; cursor: pointer; width: 213px; height: 132px;" src="http://2.bp.blogspot.com/_DmvSSAYa07o/ShoSWUmEJxI/AAAAAAAAAGo/66XYyh_SHIc/s400/2tiger.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5339600482895931154" border="0" /></a><br /><br />ननकी फौरन राजी हो गई। वह गांव के शिकारी और कुछ किसानों को साथ लेकर जंगल की ओर चल पड़ी। बहुत खोजने पर उन्हें शेर की मांद मिल गई। वे धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगे। तभी जोर की गुर्राहट हुई और शेर एक झाड़ी के पीछे से उनकी ओर झपट पड़ा। बाकी सब लोग तो डर के मारे इधर-उधर भागने लगे, पर ननकी ने शेर की आंख में आंख डालकर कहा, "चिपक जाओ"। शेर की छलांग अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि उसके हाथ-पैर और जबड़े उसके हवा में रहते ही चिपक गए और वह धड़ाम से जमीन पर गिर पड़ा।<br /><br />यह देखकर बाकी गांववाले धीरे-धीरे अपने छिपने के स्थानों से निकल आए और आश्चर्यचकित होकर आदमखोर शेर को देखने लगे। ननकी ने उन्हें शेर को मारने नहीं दिया। वह जानती थी कि फिलहाल शेर किसी का कुछ नहीं बिगाड़ सकता। सब मिलकर शेर को वगडावर गांव ले आए। वहां के बच्चे-बच्चे तक ने साहस करके शेर की पीठ पर हाथ फेर कर देखा।<br /><br />सब यही विचार कर रहे थे कि इस शेर का क्या किया जाए कि तभी चिड़ियाघर की एक गाड़ी पिंजड़ा लेकर आ गई। आदमखोर शेर के पकड़े जाने की खबर शहर तक पहुंच गई थी। चिड़ियाघर को शेर की आवश्यकता थी। उसका शेर अभी हाल ही में बूढ़ा होकर मर गया था। ननकी ने शेर को चिड़ियाघर के अधिकारियों को सहर्ष दे दिया। जब उन्होंने शेर को पिंजड़े के अंदर रख दिया और पिंजड़े का दरवाजा मजबूती से बंद कर दिया, तब ननकी ने पिंजड़े के पास जाकर "खुल जाओ" कह दिया। तुरंत शेर के हाथ-पैर खुल गए। जब शेर ने देखा कि वह कैद कर लिया गया है, तो वह थोड़ी देर बहुत छटपटाया और दहाड़ा, पर शीघ्र शांत हो गया। वह समझ गया कि वह पिंजड़े से छूट नहीं सकता। चिड़ियाघर के कर्मचारियों ने ननकी को बहुत धन्यवाद दिया और शेर को अपने साथ ले गए।बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायणhttp://www.blogger.com/profile/09013592588359905805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-426153364218667.post-14327493448251051592009-05-24T00:00:00.000-07:002009-05-24T00:01:39.699-07:00पासा गणित<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://1.bp.blogspot.com/_DmvSSAYa07o/ShjwtSR5aZI/AAAAAAAAAGU/kcmUmwjXqGQ/s1600-h/Dice.png"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;width: 155px; height: 128px;" src="http://1.bp.blogspot.com/_DmvSSAYa07o/ShjwtSR5aZI/AAAAAAAAAGU/kcmUmwjXqGQ/s400/Dice.png" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5339282019039406482" /></a><br />पासे के विपरीत चेहरों के अंकों को जोड़ने पर हमेशा सात का अंक प्राप्त होता है।बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायणhttp://www.blogger.com/profile/09013592588359905805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-426153364218667.post-31825016322139187022009-05-23T21:25:00.000-07:002009-05-23T21:26:26.473-07:00हाथ नहीं पर शेव कर सकते थेब्रिटिश गुयाना के एक राजकुंवर थे रानडियोन। उनका जन्म 1871 में हुआ था। जब वे पैदा हुए तो उनके न तो हाथ थे न पैर ही। जब वे 18 साल के हुए तो एक बड़ी सरकस कंपनी के मालिक पी।टी। बर्नम उन्हें अमरीका ले आए। हाथ और पैर न होने पर भी रानडियोन आश्चर्यजनक हद तक आत्मनिर्भर थे -- वे होंठों के बीच पेंसिल पकड़कर लिख सकते थे, कागज मोड़कर सिगरेट बना सकते थे और स्वयं ही अपनी दाड़ी बना सकते थे।बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायणhttp://www.blogger.com/profile/09013592588359905805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-426153364218667.post-21614287466910403942009-05-22T20:02:00.000-07:002009-05-22T20:03:24.727-07:00बाल कविता : आएगी अब बरसातप्यासी है रे धरती माता<br />सूख चले हैं नाले खेत<br />कराह रहा है पपीहा प्यासा<br />आएगी अब बरसात<br /><br />चल पड़ा है पवन का झोंका<br />घुमड़े बादल काले<br />देखो चमकी बिजली रानी<br />आएगी अब बरसात<br /><br />नाच रहा है वन का मोर<br />देख बादलों की चाल<br />थनगन थनगन थनगन<br />आएगी अब बरसात<br /><br />हां आएगी अब बरसात<br />भीगेगा धरती का आंचल<br />छलक उठेंगे ताल-तलैए<br />नाचेगा मुन्ना ताता-तैयाबालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायणhttp://www.blogger.com/profile/09013592588359905805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-426153364218667.post-55121618334290642782009-05-22T08:35:00.000-07:002009-05-22T08:45:00.273-07:00हमारे साहित्यकार - प्रेमचंद<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://3.bp.blogspot.com/_DmvSSAYa07o/ShbHcGUyznI/AAAAAAAAAF0/e82FOCGBk50/s1600-h/premchand.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 133px; height: 158px;" src="http://3.bp.blogspot.com/_DmvSSAYa07o/ShbHcGUyznI/AAAAAAAAAF0/e82FOCGBk50/s400/premchand.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5338673693842394738" /></a><br />प्रेमचंद का जन्म एक गरीब परिवार में काशी से चार मील दूर लमही नामक गांव में 31 जुलाई 1880 को हुआ था। उनके पिता डाक मुंशी थे।<br /><br />सात साल की अवस्था में माता का और चौदह की अवस्था में पिता का देहांत हो गया। घर में यों ही बहुत गरीबी थी, पिता के देहांत के बाद उनके सिर पर कठिनाइयों का पहाड़ टूट पड़ा। रोटी कमाने की चिंता बहुत जल्दी उनके सिर पर आ पड़ी। ट्यूशन कर करके उन्होंने मैट्रिक पास किया और फिर बाकायदा स्कूल-मास्टरी की ओर निकल गए। नौकरी करते हुए उन्होंने एफ० ए० और बी० ए० पास किया। एम० ए० भी करना चाहते थे, पर कर नहीं सके।<br /><br />स्कूल-मास्टरी के रास्ते पर चलते-चलते सन 1921 में वे गोरखपुर में डिप्टी इंस्पेक्टर स्कूल थे। जब गांधी जी ने सरकारी नौकरी से इस्तीफे का बिगुल बजाया, उसे सुनकर प्रेमचंद ने भी फौरन इस्तीफा दे दिया। उसके बाद कुछ रोज उन्होंने कानपुर के मारवाड़ी स्कूल में काम किया, पर वह चल नहीं सका।<br /><br />अंतिम दिनों के एक वर्ष को छोड़कर (सन 1934-35 जो मुंबई की फिल्मी दुनिया में बीता), उनका पूरा समय बनारस और लखनऊ में गुजरा, जहां उन्होंने अनेक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया और अपना साहित्य-सृजन करते रहे।<br /><br />8 अकतूबर 1936 को जलोदर रोग से उनका देहावसान हुआ।<br /><br />प्रेमचंद ने पहले उर्दू में लिखना शुरू किया, पर बाद में उन्हें लगा कि हिंदी में लिखने से वे अधिक संख्या में पाठकों तक पहुंच सकते हैं। प्रेमचंद उनका असली नाम नहीं था। उनका असली नाम नवाबराय था। उनकी पहली रचना सोजे-वतन थी जिसमें देशभक्तिपूर्ण कहानियां थीं। छपते ही इसे अंग्रेजों ने जब्त कर लिया। तत्पश्चात वे प्रेमचंद के नाम से लिखने लगे।<br /><br />प्रेमचंद ने कहानी और उपन्यास दोनों ही लिखे हैं। वे भारत के श्रेष्ठतम कहानीकार और उपन्यासकार के रूप में जाने जाते हैं। उनके प्रमुख उपन्यासों में शामिल हैं कर्मभूमि, गबन, रंगभूमि, गोदान आदि। गोदन उनकी अंतिम रचना थी और कई दृष्टियों से वह उनकी श्रेष्ठतम रचना भी है।<br /><br />हिंदी साहित्य और साहित्यकारों को बढ़ावा देने के इरादे से उन्होंने हंस नामक पत्रिका शुरू की, जिसमें उन्होंने समकालीन रचनाकारों की अनेक रचनाएं प्रकाशित कीं। यह पत्रिका आज भी प्रकाशित हो रही है और हिंदी की प्रमुख साहित्यिक पत्रिकाओं में गिनी जाती है।<br /><br />प्रेमचंद लेखक होने के साथ-साथ समाज सुधारक भी थे। उनकी सभी रचनाओं में उन्होंने किसी न किसी ज्वलंत सामाजिक समस्या का चित्रण किया है।<br /><br />प्रेमचंद के सबसे बेटे अमृतराय ने उनकी जीवनी लिखी है, जिसका नाम है, कलम का सिपाही।<br /><br />प्रेमचंद की कुछ कहानियों पर फिल्में भी बनी हैं, जैसे सत्यजित राय की फिल्म शतरंज के खिलाड़ी।<br /><br />प्रेमचंद के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए <a href="http://tdil.mit.gov.in/CoilNet/IGNCA/prem.htm">यहां क्लिक करो</a>।<br />प्रेमचंद की एक कहानी पढ़ने के लिए <a href="http://baljaihindi.blogspot.com/2009/05/blog-post_22.html">यहां क्लिक करो</a>।बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायणhttp://www.blogger.com/profile/09013592588359905805noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-426153364218667.post-40589687359883059852009-05-22T08:34:00.000-07:002009-05-22T08:35:16.890-07:00ठाकुर का कुआं<h3>प्रेमचंद</h3><br /><br />1<br />जोखू ने लोटा मुंह से लगाया तो पानी में सख्त बदबू आई। गंगी से बोला - यह कैसा पानी है ? मारे बास के पिया नहीं जाता। गला सूखा जा रहा है और तू सड़ा पानी पिलाए देती है!<br /><br />गंगी प्रतिदिन शाम पानी भर लिया करती थी। कुआं दूर था, बार-बार जाना मुश्किल था। कल वह पानी लाई, तो उसमें बू बिलकुल न थी, आज पानी में बदबू कैसी! लोटा नाक से लगाया, तो सचमुच बदबू थी। जरूर कोई जानवर कुएं में गिरकर मर गया होगा, मगर दूसरा पानी आए कहां से?<br /><br />ठाकुर के कुंए पर कौन चढ़ने देगा ? दूर से लोग डांट बताएंगे। साहू का कुआं गांव के उस सिरे पर है, परंतु वहां कौन पानी भरने देगा ? कोई कुआं गांव में नहीं है।<br /><br />जोखू कई दिन से बीमार है। कुछ देर तक तो प्यास रोके चुप पड़ा रहा, फिर बोला - अब तो मारे प्यास के रहा नहीं जाता। ला, थोड़ा पानी नाक बंद करके पी लूं।<br /><br />गंगी ने पानी न दिया। खराब पानी से बीमारी बढ़ जाएगी इतना जानती थी, परंतु यह न जानती थी कि पानी को उबाल देने से उसकी खराबी जाती रहती है। बोली - यह पानी कैसे पियोगे? न जाने कौन जानवर मरा है। कुएं से मैं दूसरा पानी लाए देती हूं।<br /><br />जोखू ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा - पानी कहां से लाएगी ?<br /><br />‘ठाकुर और साहू के दो कुएं तो हैं। क्यो एक लोटा पानी न भरने देंगे?’<br /><br />‘हाथ-पांव तुड़वा आएगी और कुछ न होगा। बैठ चुपके से। ब्राह्मण देवता आशीर्वाद देंगे, ठाकुर लाठी मारेंगे, साहूजी एक पांच लेंगे। गरीबी का दर्द कौन समझता हैं! हम तो मर भी जाते हैं, तो कोई दुआर पर झांकने नहीं आता, कंधा देना तो बड़ी बात है। ऐसे लोग कुएं से पानी भरने देंगे?’<br /><br />इन शब्दों में कड़वा सत्य था। गंगी क्या जवाब देती, किंतु उसने वह बदबूदार पानी पीने को न दिया।<br /><br />2<br />रात के नौ बजे थे। थके-मांदे मजदूर तो सो चुके थे, ठाकुर के दरवाजे पर दस-पांच बेफिक्रे जमा थे मैदान में। बहादुरी का तो न जमाना रहा है, न मौका। कानूनी बहादुरी की बातें हो रही थीं। कितनी होशियारी से ठाकुर ने थानेदार को एक खास मुकदमे की नकल ले आए। नाजिर और मोहतिमिम, सभी कहते थे, नकल नहीं मिल सकती। कोई पचास मांगता, कोई सौ। यहां बे-पैसे-कौड़ी नकल उड़ा दी। काम करने का ढंग चाहिए।<br /><br />इसी समय गंगी कुएं से पानी लेने पहुंची।<br /><br />कुप्पी की धुंधली रोशनी कुएं पर आ रही थी। गंगी जगत की आड़ मे बैठी मौके का इंतजार करने लगी। इस कुंए का पानी सारा गांव पीता है। किसी के लिए रोक नहीं, सिर्फ ये बदनसीब नहीं भर सकते।<br /><br />गंगी का विद्रोही दिल रिवाजी पाबंदियों और मजबूरियों पर चोटें करने लगा - हम क्यों नीच हैं और ये लोग क्यों ऊंचे हैं ? इसलिए कि ये लोग गले में तागा डाल लेते हैं ? यहां तो जितने हैं, एक-से-एक छंटे हैं। चोरी ये करें, जाल-फरेब ये करें, झूठे मुकदमे ये करें। अभी इस ठाकुर ने तो उस दिन बेचारे गड़रिए की भेड़ चुरा ली थी और बाद में मारकर खा गया। इन्हीं पंडित के घर में तो बारहों मास जुआ होता है। यही साहू जी तो घी में तेल मिलाकर बेचते हैं। काम करा लेते हैं, मजूरी देते नानी मरती है। किस-किस बात में हमसे ऊंचे हैं, हम गली-गली चिल्लाते नहीं कि हम ऊंचे हैं, हम ऊंचे हैं। कभी गांव में आ जाती हूं, तो रस-भरी आंख से देखने लगते हैं। जैसे सबकी छाती पर सांप लोटने लगता है, परंतु घमंड यह कि हम ऊंचे हैं!<br /><br />कुएं पर किसी के आने की आहट हुई। गंगी की छाती धक-धक करने लगी। कहीं देख ले तो गजब हो जाए। एक लात भी तो नीचे न पड़े। उसाने घड़ा और रस्सी उठा ली और झुककर चलती हुई एक वृक्ष के अंधरे साए में जा खड़ी हुई। कब इन लोगों को दया आती है किसी पर! बेचारे महगू को इतना मारा कि महीनों लहू थूकता रहा। इसीलिए तो कि उसने बेगार न दी थी। इस पर ये लोग ऊंचे बनते हैं?<br /><br />कुएं पर स्त्रियां पानी भरने आई थीं। इनमें बात हो रही थी।<br /><br />‘खाना खाने चले और हुक्म हुआ कि ताजा पानी भर लाओ। घड़े के लिए पैसे नहीं है।’<br /><br />‘हम लोगों को आराम से बैठे देखकर जैसे मरदों को जलन होती है।’<br /><br />‘हां, यह तो न हुआ कि कलसिया उठाकर भर लाते। बस, हुकुम चला दिया कि ताजा पानी लाओ, जैसे हम लौंडियां ही तो हैं।’<br /><br />‘लौडिंयां नहीं तो और क्या हो तुम? रोटी-कपड़ा नहीं पातीं ? दस-पांच रुपए भी छीन- झपटकर ले ही लेती हो। और लौडियां कैसी होती हैं!’<br /><br />‘मत लजाओ, दीदी! छिन-भर आराम करने को तो तरसकर रह जाता है। इतना काम किसी दूसरे के घर कर देती, तो इससे कहीं आराम से रहती। ऊपर से वह एहसान मानता! यहां काम करते-करते मर जाओ, पर किसी का मुंह ही सीधा नहीं होता।’<br /><br />दानों पानी भरकर चली गईं, तो गंगी वृक्ष की छाया से निकली और कुएं की जगत के पास आई। बेफिक्रे चले गए थे। ठाकुर भी दरवाजा बंद कर अंदर आंगन में सोने जा रहे थे। गंगी ने क्षणिक सुख की संस ली। किसी तरह मैदान तो साफ हुआ। अमृत चुरा लाने के लिए जो राजकुमार किसी जमाने में गया था, वह भी शायद इतनी सावधानी के साथ और समझ-बूझकर न गया होगा। गंगी दबे पांव कुएं की जगत पर चढ़ी, विजय का ऐसा अनुभव उसे पहले कभी न हुआ।<br /><br />उसने रस्सी का फंदा घड़े में डाला। दाएं-बाएं चौकन्नी दृष्टि से देखा जैसे कोई सिपाही रात को शत्रु के किले में सूराख कर रहा हो। अगर इस समय वह पकड़ ली गई, तो फिर उसके लिए माफी या रियायत की रत्ती-भर उम्मीद नहीं। अंत में देवताओं को याद करके उसने कलेजा मजबूत किया और घड़ा कुएं में डाल दिया।<br /><br />घड़े ने पानी में गोता लगाया, बहुत ही आहिस्ता। जरा-सी आवाज न हुई। गंगी ने दो-चार हाथ जल्दी-जल्दी मारे। घड़ा कुएं के मुंह तक आ पहुंचा। कोई बड़ा शहजोर पहलवान भी इतनी तेजी से न खींच सकता था।<br /><br />गंगी झुकी कि घड़े को पकड़कर जगत पर रखें कि एकाएक ठाकुर साहब का दरवाजा खुल गया। शेर का मुंह इससे अधिक भयानक न होगा।<br /><br />गंगी के हाथ रस्सी छूट गई। रस्सी के साथ घड़ा धड़ाम से पानी में गिरा और कई क्षण तक पानी में हिलकोरे की आवाजें सुनाई देती रहीं।<br /><br />ठाकुर कौन है, कौन है ? पुकारते हुए कुएं की तरफ जा रहे थे और गंगी जगत से कूदकर भागी जा रही थी।<br /><br />घर पहुंचकर देखा कि जोखू लोटा मुंह से लगाए वही मैला गंदा पानी पी रहा है।बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायणhttp://www.blogger.com/profile/09013592588359905805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-426153364218667.post-41421195669423586122009-05-21T22:14:00.000-07:002009-05-21T22:15:35.627-07:00ऊंच-नीच की बातगारो, खासी, जैंतिया-पर्वत आदि पूर्वी इलाकों में रहनेवाले आदिवासी लोगों की औसत ऊंचाई देश भर में सबसे कम है। वहां एक औसत पुरुष की ऊंचाई 157 सेंटीमीटर है जबकि समूचे भारत के लिए यह 162 सेंटीमीटर है। पंजाब, राजस्थान और हरियाणा के पुरुष सबसे ऊंचे होते हैं - उनकी औसत ऊंचाई 168.4 सेंटीमीटर है।बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायणhttp://www.blogger.com/profile/09013592588359905805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-426153364218667.post-6347218929558579162009-05-21T05:39:00.001-07:002009-05-21T05:40:38.672-07:00दो दिलों वाला मनुष्यउन्नीसवीं सदी में इटली में ग्यूसेप डि माई नामक एक व्यक्ति हुआ था जिसके शरीर में दो दिल थे। वह दुनिया भर के वैज्ञानिकों की रुचि का केंद्र रहा। सन 1894 में लंदन अकादमी ओफ मेडिसिन ने ग्यूसेप को उसकी मृत्यु के बाद अनुसंधान हेतु उसका शरीर प्राप्त करने के लिए 15,000 पाउंड की पेशगी दी।बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायणhttp://www.blogger.com/profile/09013592588359905805noreply@blogger.com1