अमरशक्ति नाम का एक राजा था। बहुशक्ति, उग्रशक्ति और अनंतशक्ति नाम के उसके तीन पुत्र थे। वे बड़े मूर्ख थे। उनको पढ़ाने के लिए अमरशक्ति ने अनेक उपाय किए पर वे न पढ़ सके। इस पर विष्णुशर्मा नामक एक नीति-कुशल पंडित ने उन्हें छह महीने में नीतिज्ञ कर देने का राजा को वचन दिया और मित्र-भेद, मित्र-संप्राप्ति, काकोलूकीय, लब्धप्रकाश और अपरीक्षित--ये पंचतंत्र पढ़ाकर उन महामूर्खों को पूर्ण पंडित बना दिया।
पंचतंत्र दुनिया के उन थोड़े पुस्तकों में से एक है जिनका प्राचीन काल में ही यूरोप की प्रायः तमाम भाषाओं में अनुवाद हो गया था। इसका सबसे पहला अनुवाद छठी शताब्दी में फारसी में हुआ। फारसी से अरबी भाषा में इसका अनुवाद हुआ। अरबी से सन 1080 के लगभग इसका यूनानी भाषा में अनुवाद हुआ। फिर यूनानी से इसका उल्था लैटिन भाषा में पसिनस नामक व्यक्ति ने किया। अरब अनुवाद का एक उल्था स्पेन की भाषा में सन 1251 के लगभग प्रकाशित हुआ। जर्मन भाषा में पहला अनुवाद 15वीं शताब्दी में हुआ और उससे ग्रंथ का अनुवाद यूरोप की सब भाषाओं में हो गया।
गुरुवार, 28 मई 2009
पंचतंत्र की कहानी
प्रस्तुतकर्ता बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण पर 7:27 pm
लेबल: हमारा साहित्य
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