शनिवार, 9 मई 2009

अभी मुझे बढ़ने दो


एक चिड़िया कहीं से एक बीज लेकर आई। उसे एक पत्थर पर रखकर खाने लगी। बीज के कड़े खोल को फोड़ने के लिए उसने अपनी पैनी चोंच से बीज पर प्रहार किया। बीज छिटककर कहीं दूर जा गिरा। चिड़िया ने उसे बहुत खोजा पर वह नहीं मिला। तब चिड़िया दूसरे बीज की खोज में उड़ गई।

एक दिन जोरदार बारिश हुई। अगले ही दिन जमीन पर एक छोटा-सा पौधा पैदा हुआ। यह वही बीज था जो चिड़िया की चोंच से छिटक गया था। बारिश का पानी सोखकर वह अंकुरित हो गया था।

इस छोटे से पौधे को देखकर एक गिलहरी उसे खाने आई। तब पौधे ने उससे कहा, "गिल्लू, अभी मैं बहुत छोटा हूं। जरा और बढ़ा हो जाऊं, तब खा लेना।" यह सुनकर गिलहरी चली गई।

धूप और पानी लेकर वह पौधा बढ़ने लगा। कुछ ही समय में वह एक हरी-भरी झाड़ी बन गया। उसे देखकर एक काली बकरी उसकी ओर बढ़ी। जैसे ही बकरी ने झाड़ी को खाने मुंह बढ़ाया, झाड़ी ने कहा, "री कजरी, सब्र कर, सब्र कर। मुझे अभी और बढ़ना है।" तब वह बकरी दूसरी जगह चली गई।

झाड़ी बढ़ती-बढ़ती एक छोटा पेड़ हो गई। तब एक औरत हंसिया और रस्सी लेकर चूल्हे के लिए लकड़ी इकट्ठा करने वहां आई। उसने पेड़ को देखकर कहा, "इसी की कुछ डालियं मैं काट लेती हूं।" और हंसिया लेकर उसकी ओर बढ़ी। तब पेड़ ने कहा, "काकी, मुझे मत काटो। मुझे और बढ़ने दो।" यह सुनकर वह औरत कहीं और चली गई।

पेड़ बढ़ते-बढ़ते ऊंचाई में आसमान से होड़ करने लगा। उसकी डालियां दूर-दूर तक फैल गईं और उन पर पत्तों का घना आवरण चढ़ गया। उस पर बहुतेरे सुगंधित फूल और असंख्य मीठे फल लग गए। उसकी विशाल डालियों में अनेक चिड़ियों ने घोंसला बना लिया। गिलहरियां उस पर ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर दौड़-दौड़कर खेलने लगीं।

उसके तने के पास नीचे गिरे पड़े फूलों, फलों और पत्तों को खाने बकरी सहित अनेक जानवर आने लगे। गांव की औरतों को चूल्हें में फूंकने के लिए उसकी खूब सारी सूखी डालियां मिलने लगीं।

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