प्रेमचंद का जन्म एक गरीब परिवार में काशी से चार मील दूर लमही नामक गांव में 31 जुलाई 1880 को हुआ था। उनके पिता डाक मुंशी थे।
सात साल की अवस्था में माता का और चौदह की अवस्था में पिता का देहांत हो गया। घर में यों ही बहुत गरीबी थी, पिता के देहांत के बाद उनके सिर पर कठिनाइयों का पहाड़ टूट पड़ा। रोटी कमाने की चिंता बहुत जल्दी उनके सिर पर आ पड़ी। ट्यूशन कर करके उन्होंने मैट्रिक पास किया और फिर बाकायदा स्कूल-मास्टरी की ओर निकल गए। नौकरी करते हुए उन्होंने एफ० ए० और बी० ए० पास किया। एम० ए० भी करना चाहते थे, पर कर नहीं सके।
स्कूल-मास्टरी के रास्ते पर चलते-चलते सन 1921 में वे गोरखपुर में डिप्टी इंस्पेक्टर स्कूल थे। जब गांधी जी ने सरकारी नौकरी से इस्तीफे का बिगुल बजाया, उसे सुनकर प्रेमचंद ने भी फौरन इस्तीफा दे दिया। उसके बाद कुछ रोज उन्होंने कानपुर के मारवाड़ी स्कूल में काम किया, पर वह चल नहीं सका।
अंतिम दिनों के एक वर्ष को छोड़कर (सन 1934-35 जो मुंबई की फिल्मी दुनिया में बीता), उनका पूरा समय बनारस और लखनऊ में गुजरा, जहां उन्होंने अनेक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया और अपना साहित्य-सृजन करते रहे।
8 अकतूबर 1936 को जलोदर रोग से उनका देहावसान हुआ।
प्रेमचंद ने पहले उर्दू में लिखना शुरू किया, पर बाद में उन्हें लगा कि हिंदी में लिखने से वे अधिक संख्या में पाठकों तक पहुंच सकते हैं। प्रेमचंद उनका असली नाम नहीं था। उनका असली नाम नवाबराय था। उनकी पहली रचना सोजे-वतन थी जिसमें देशभक्तिपूर्ण कहानियां थीं। छपते ही इसे अंग्रेजों ने जब्त कर लिया। तत्पश्चात वे प्रेमचंद के नाम से लिखने लगे।
प्रेमचंद ने कहानी और उपन्यास दोनों ही लिखे हैं। वे भारत के श्रेष्ठतम कहानीकार और उपन्यासकार के रूप में जाने जाते हैं। उनके प्रमुख उपन्यासों में शामिल हैं कर्मभूमि, गबन, रंगभूमि, गोदान आदि। गोदन उनकी अंतिम रचना थी और कई दृष्टियों से वह उनकी श्रेष्ठतम रचना भी है।
हिंदी साहित्य और साहित्यकारों को बढ़ावा देने के इरादे से उन्होंने हंस नामक पत्रिका शुरू की, जिसमें उन्होंने समकालीन रचनाकारों की अनेक रचनाएं प्रकाशित कीं। यह पत्रिका आज भी प्रकाशित हो रही है और हिंदी की प्रमुख साहित्यिक पत्रिकाओं में गिनी जाती है।
प्रेमचंद लेखक होने के साथ-साथ समाज सुधारक भी थे। उनकी सभी रचनाओं में उन्होंने किसी न किसी ज्वलंत सामाजिक समस्या का चित्रण किया है।
प्रेमचंद के सबसे बेटे अमृतराय ने उनकी जीवनी लिखी है, जिसका नाम है, कलम का सिपाही।
प्रेमचंद की कुछ कहानियों पर फिल्में भी बनी हैं, जैसे सत्यजित राय की फिल्म शतरंज के खिलाड़ी।
प्रेमचंद के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए यहां क्लिक करो।
प्रेमचंद की एक कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करो।
शुक्रवार, 22 मई 2009
हमारे साहित्यकार - प्रेमचंद
प्रस्तुतकर्ता बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण पर 8:35 am
लेबल: हमारे साहित्यकार
Subscribe to:
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
1 Comment:
hey good very good story
Post a Comment