सोमवार, 11 मई 2009

ओस का अद्भुत जादूगर - लेखक:- फ्रैंक बौम - 1

तूफान


डोरोथी अपने चाचा हेनरी, जो एक किसान थे, और चाची एम, जो उनकी पत्नी थीं, के साथ कंसास के विशाल प्रेरी मैदानों के बीच रहती थी। उनका घर छोटा था, क्योंकि उसे बनाने के लिए लकड़ी कोसों दूर से बैलगाड़ी पर लानी होती थी। घर के बस चार दीवारें, एक फर्श और एक छत थीं, जो सब मिलकर एक कमरा बनाती थीं। उस कमरे में थे लोहे का एक जंग लगा चूल्हा, बर्तन रखने की एक अलमारी, एक मेज, तीन-चार कुर्सियां और तीन पलंग। चाचा हेनरी और चाची एम के बड़े पलंग एक कोने में थे और डोरोथी का छोटा पलंग दूसरे कोने में। उस घर में न कोई अटारी थी न कोई तहखाना, बस कमरे के बीचोंबीच एक गहरा गड्ढ़ा था, जिसे तूफान गड्ढा कहते थे। पूरे घर को ही कुचल देने की ताकत रखनेवाले भयंकर चक्रवाती तूफान जब आते थे, तब घर के सभी सदस्य इसी गड्ढे में जा छिपते थे। गड्ढे के मुंह पर एक चोर दरवाजा था जिसको खोलने पर एक सीढ़ी के जरिए गड्ढे में उतरा जा सकता था। यह चोर दरवाजा कमरे के बीच में था।

जब डोरोथी घर के द्वार पर खड़ी होकर चारों ओर देखती थी, तब उसे क्षितिज तक मिट्टी के रंग का विशाल प्रेरी मैदान ही लहराता हुआ दिखाई देता था। उस विशाल समतल भूभाग पर एक भी पेड़ या मकान न था। जहां तक दृष्टि जाती थी बस प्रेरी मैदान की धूसर घास ही घास नजर आती थी। जहां-जहां जमीन जुती थी, वहां सब तेज धूप ने मिट्टी को तपाकर धूसर कर दिया था और उस पर जगह-जगह दरारें पड़ गई थीं। घास भी हरी नहीं रह गई थी, क्योंकि सूरज ने घास की पत्तियों के सिरों को जलाकर पीला कर दिया था और वे भी जमीन के ही समान धूसर रंग के हो गए थे। कभी मकान की दीवारों को रंगा गया था, पर धूप ने रंग को इस कदर सुखा दिया था कि रंग की पपड़ियां उखड़ गई थीं और वे बारिश के पानी में कब की बह चुकी थीं। अब दीवारें भी उसी धूसर रंग की हो गई थीं।

जब चाची एम इस मकान में रहने आई थीं, तब वे जवान और सुंदर थीं। पर यहां की धूप और हर चीज को सुखाने वाली तेज हवाओं ने उन्हें भी बदल दिया था। उनके कारण चाची की आंखों की चमक जाती रही थी और वे उसी निर्जीव धूसर रंग की हो गई थीं। उनके गालों और होंठों की लाली भी उड़ गई थी और वे भी अन्य सभी चीजों के समान बेरंग हो गए थे। उनका शरीर दुबला और हड़ीला था और वे कभी नहीं हंसती थीं। डोरोथी एक अनाथ बच्ची थी। जब सर्वप्रथम वह उनके पास आई थी, तब उसकी हंसी सुनकर एम चाची इतनी हतप्रभ हुई थीं कि वे चीख उठी थीं और अपने हृदय को दोनों हाथों से दबाकर यह सोचने लगी थीं कि इस अनाथ बच्ची को इस नीरस वातावरण में हंसने का क्या कारण मिल गया।

चाचा हेनरी कभी हंसते नहीं थे। वे सुबह से रात तक कड़ी मेहनत करते थे और यह लगभग भूल गए थे कि खुशियां किसे कहते हैं। वे अपनी लंबी दाड़ी से लेकर अपने खुरदुरे देशी बूटों तक मिट्टी के रंग के थे। वे गंभीर एवं सख्त स्वभाव के थे और बहुत कम बोलते थे।

डोरोथी को यदि कोई हंसाता था तो वह था टोटो, और वही उसे भी अन्य चीजों के समान बेरंग हो जाने से बचाता था। टोटो मिट्टी के रंग का नहीं था। वह एक नन्हा, काला कुत्ता था, जिसके बाल लंबे और मुलायम थे। उसकी छोटी-छोटी काली आंखें उसकी पिद्दी सी काली नाक के दोनों ओर चमचमाती रहती थीं। टोटो दिन भर खेलता रहता था और डोरोथी उसके साथ खेलती थी। उसे वह बेहद प्यार करती थी।

लेकिन आज वे खेल नहीं रहे थे। चाचा हेनरी दरवाजे के चौखट पर बैठे चिंता के साथ आसमान को ताक रहे थे। आसमान आज सामान्य से भी अधिक धूसर हो रहा था। डोरोथी टोटो को होथों में लिए दरवाजे के पास खड़ी थी। वह भी आसमान की ओर देख रही थी। चाची एम बर्तन मांज रही थीं।

दूर से उन्हें हवाओं का हल्का रुदन सुनाई दे रहा था और चाचा हेनरी और डोरोथी को दिख रहा था कि कहां घास हवा के आघात के सामने बड़ी-बड़ी लहरों के रूप में झुकी जा रही है। तभी दक्षिण की दिशा से भी हवा के चलने का शोर उठा और जब उन्होंने उस ओर देखा तो वहां भी घास तूफान के थपेड़ों से अस्त-व्यस्त होती हुई दिखाई दी।

चाचा हेनरी अचानक खड़े हो गए।

"तूफान सिर पर आ गया, एम", उन्होंने अपनी पत्नी को पुकार कर कहा, "मैं गायों को बाड़े में बंद करके अभी आया।" यह कहकर वे गोशाला की ओर बढ़े जहां गायों और घोड़ों को रखा गया था।

एम चाची अपना काम सब भूलकर मकान की ओर दौड़ीं। आसमान पर एक नजर डालते ही वे समझ गईं कि तूफान उन पर टूटने ही वाला है।

"जल्दी करो डोरोथी," वे चीखीं, "तूफान गड्ढे में उतर जाओ।"

तभी टोटो डोरोथी के हाथों से निकलकर पलंग के नीचे जा छुपा और डिरोथी उसे पकड़ने दौड़ी। उधर बुरी तरह डरी हुई एम चाची तूफान गड्ढे का दरवाजा खोलकर सीढ़ियां उतरने लगीं और उस छोटे अंधियाले गड्ढे में जा बैठीं। आखिरकार डोरोथी ने टोटो को पकड़ ही लिया और वह भी अपनी चाची का अनुसरण करने बढ़ी। अभी वह कमरे के बीच तक पहुंची ही थी कि बाहर हवा का चीखना एकदम से बढ़ गया और उनका घर इतनी तेजी से हिल उठा कि डोरोथी अपना संतुलन खो बैठी और धड़ाम से फर्श पर बैठ गई।

तब एक विचित्र बात हुई।

उनका घर दो-तीन बार तेजी से अपने ही चारों ओर घूम उठा और धीरे-धीरे ऊपर उठने लगा। डोरोथी को ऐसा लगा मानो वह एक गुब्बारे पर सावार हो।

उत्तर और दक्षिण से बह आई हवाएं ठीक डोरोथी के घर के ऊपर आ मिली थीं और इस तरह से उसका घर तूफान का केंद्र हो गया था। तूफान के केंद्र में हवा आमतौर पर शांत ही रहती है, लेकिन चारों ओर से हवा के दबाव के कारण घर ऊपर और ऊपर उठता गया और जल्द ही वह तूफान के एकदम ऊपर पहुंच गया जहां वह टिका रहकर तूफान के साथ-साथ मीलों उड़ता चला गया मानो वह एक भारी भरकम घर नहीं एक हल्का पर हो।

चारों ओर घुप अंधेरा था और हवा के चीखने से डोरोथी के कान फटे जा रहे थे, अन्यथा उसे कोई तकलीफ नहीं हुई क्योंकि उसने देखा कि वह आराम से उड़ी जा रही है। पहले जब घर तीन चार बार अपने चारों ओर घूम उठा था और बाद में जब वह एक बार थोड़ी देर के लिए एक ओर झुक गया था, डरोथी जरा डरी थी, पर बाकी समय उसे ऐसा लगा जैसे कोई उसे पालने में डालकर धीरे-धीरे झुला रहा हो।

टोटो को यह सब बिलकुल पसंद नहीं आया। वह कमरे में कभी इधर और कभी उधर गोल-गोल दौड़कर गला फाड़-फाड़ कर भौंकने लगा। पर डोरोथी चुपचाप फर्श पर बैठी रही और यह देखने लगी कि अब क्या होता है।

एक बार जब टोटो खुले चोर दरवाजे के पास गया, तो उसमें से नीचे गिर गया, और डोरोथी ने सोचा कि अब वह उसे नहीं मिल पाएगा। लेकिन तभी उसे टोटो का एक कान चोर दरवाजे के चौखट से ऊपर उड़ता हुआ दिखाई दिया। हवा के दबाव ने उसे नीचे गिरने से रोके रखा था। डोरोथी सावधानी से रेंगकर चोर दरवाजे तक गई और टोटो का कान पकड़कर उसे घर के अंदर खींच लिया। इसके बाद डोरोथी ने चोर दरवाजे को बंद ही कर दिया ताकि ऐसा हादसा दुबारा न हो।

समय बीतता गया और डरोथी ने अपने डर पर काबू पा लिया। उसे बहुत अकेलापन महसूस हो रहा था और हवाओं के चीखने से वह लगभग बहरी हो गई थी। पहले उसे चिंता हुई थी कि जब घर नीचे गिरेगा तब उसके टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे, पर जैसे-जैसे समय बीतता गया और ऐसी कोई भयंकर बात नहीं हुई, उसने चिंता करना छोड़ दिया और बड़े धीरज से आगे की घटनाओं का इंतजार करने लगी। अंत में वह हिलती फर्श पर घुटनों के सहारे चलकर अपने पलंग तक गई और उस पर चढ़कर लेट गई। तब टोटो भी पलंग पर चढ़कर उसके पास आकर लेट गया।

घर के हिलने और बाहर हवा के चीखने के बावजूद कुछ ही देर में डोरोथी की आंखें मुंद गईं और वह गहरी नींद में सो गई।

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