गुरुवार, 4 जून 2009

आज पर्यावरण दिवस है

आज 5 जून है, यानी पर्यावरण दिवस।

आज तुम्हें करना है ऐसा कोई काम जो पर्यावरण, प्रकृति, वन्यजीवन, वन आदि को फायदा पहुंचाए।

क्या तुम सोच रहे हो, या रही हो, कि मैं क्या कर सकता हूं, या कर सकती हूं? मैं तो एक छोटा बच्चा, या बच्ची, ही हूं।

क्या तुमने उस गिलहरी की कहानी सुनी है, जिसने समुद्र में पुल बांधने में श्री राम की मदद की थी? उसने यह नहीं सोचा, कि मैं क्या कर सकती हूं, मैं तो बस एक छोटी सी गिलहरी हूं, यहां तो अंगद, हनुमान, जांबवान, सुग्रीव आदि बड़े-बड़े योद्धा हैं, नल-नील आदि बड़े-बड़े इंजीनियर हैं, और विभीषण, लक्षमण आदि कुशल लोग हैं। वे सब कर लेंगे, मुझे बीच में पड़ने की कोई जरूरत नहीं।

नहीं वह गिलहरी समुद्र में डुबकी लगाकर रेत में लोटी। फिर जहां पुल बन रहा था वहां जाकर अपने शरीर को झटकर उससे चिपके रेत को वहां गिराया। योगदान तुच्छ, पर महत्वपूर्ण था। उसके योगदान का मूल्य इसमें नहीं था कि कितने कण रेत उसने इस तरह पुल तक पहूंचाए, बल्कि इसमें था कि उसके मन में मदद करने की कितनी सच्ची भावना थी।

आओ, तुम्हें एक और प्रेरक प्रसंग सुनाता हूं, इस बार हमारे बापू की। तुम जानते/ती ही हो कि वे आजादी की लड़ाई के लिए लोगों से चंदे वसूलते थे। उनकी सभा में जो भी जाता था, उनसे अपेक्षा की जाती थी कि वे कुछ-न-कुछ चंदा दें। ऐसी एक सभा में हजारों रुपए जमा किए गए। बड़े-बड़े सेठ, उद्योगपतियों, वकीलों, डाक्टरों आदि ने गांधी जी पर रुपए बरसाए। एक भिखारी भी उस सभा में आया था। उसके पास ज्याद पैसे न थे। फिर भी उसने दो-एक पैसे गांधी जी को दिए।

बाद में जब गांधी जी सभा को संबोधित कर रहे थे, उन्होंने जिक्र किया तो उस भिखारी से मिले दो-एक पैसे का, न कि सेठों, उद्योगपतियों, वकीलों, डाक्टरों से मिले हजारों रुपए का। गांधी जी ने कहा, यदि धन्ना सेठ जिनके पास करोड़ों रुपए हैं, कुछ हजार रुपए मुझे दे दें, तो यह कोई बड़ी बात नहीं है। लेकिन उस भिखारी का दो-तीन पैसे देना बहुत बड़ी बात है। संभव है वह उसकी पूरे दिन की या कई दिनों की कमाई हो। उसे देने के बाद उसे उस रात भूखा रहना पड़ा हो। इसलिए उसने अपनी गाढ़ी कमाई मुझे देकर सेठों, उद्योगपतियों आदि से कहीं बड़ा बलिदान किया है, और इसलिए उसके पैसे का मूल्य भी कहीं ज्यादा है।

तो अपनी तुच्छता या छुटता का ख्याल न करके, पर्यावरण को फायदा पहुंचानेवाला कोई काम कर डालो आज। कुछ सुझाव यहां दे रहा हूं -

1. घर में पानी, बिजली, ईंधन आदि की बचत करने का प्रयास करो। घर के अन्य लोगों को भी इसके लिए प्रोत्साहन दो। कमरे से जाते समय लाइट, फैन आदि को बंद करो। टपकते नलों को ठीक कराओ। रसोईघर में खाना पकाते समय बर्तन को बंद रखने को कहो। घर में सब एक-साथ खाओ ताकि खाने को बारबार गरम न करना पड़े।

2. घर में सब्जी आदि धोने के पानी से गमलों और बगीचे को सींचो।

3. कागज, प्लास्टिक, बोतल आदि को इकट्ठा करके रद्दीवाले को बेचो।

4. यदि सुविधा हो, तो घर के बगीचे में या अन्य किसी जगह पेड़ लगाओ। यदि नहीं, आस-पास लगे पेड़ों को पानी दो और उनकी देखभाल करो।

5. दोस्तों में, आस पड़ोस के लोगों में पर्यावरणीय चेतना जगाने की कोशिश करो। मेरे एक अन्य ब्लोग कुदरतनामा में पर्यावरण पर एक नाटक का स्क्रिप्ट दिया गया है। दो-चार बच्चे मिलकर और टीचर, मां-बांप आदि की मदद लेकर इसे अपने स्कूल में, मुहल्ले में, नुक्कड़ पर मंचित करो। स्वयं में पर्यावरण पर लेख, कहानी, कविता, नाटक आदि लिखकर प्रकाशित करो।

6. इंटरनेट, पुस्तकें, टीवी आदि से पर्यावरण, वन्यजीवन, पर्यावरणीय समस्याएं आदि के बारे में अधिकाधिक जानकारी संकलित करो, और इन समस्याओं का क्या समाधान हो सकता है, इसके बारे में गंभीरता से सोचो।

7. कहीं पास में जाना हो, तो पैदल जाओ या साइकिल पर या बस-ट्रेन आदि से, न कि मोटरकार से या स्कूटर आदि से।

8. बाजार जाते समय अपने पास कपड़े का थैला रखों और दुकानदारों से कहो कि वे सामन को प्लास्टिक के थैलों में न दें बल्कि आपके थैले में सीधे डालें।

पर्यावरण दिवस के पर्व को सफल बनाओ।

यदि तुम जानना चाहते/ती हो, कि पर्यावरण दिवस क्यों मनाया जाता है और उसकी शुरुआत कैसे हुई, तो मेरे ब्लोग कुदरतनामा का यह लेख पढ़ो।

2 Comments:

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

बहुत ही बढ़िया ! कोई ऐसा विजेट इस ब्लॉग पर लगाइए जो लेखों को पढ़ सके। यदि आवाज मनोरंजक हुई तो बच्चों को और भी आनन्द आएगा।

आज कल के बच्चों को कुछ सुना पाना भी एक महान कला है। न तो उनके पास धैर्य है और न ही समय। बेचारे बड़े busy रहते हैं।

Raj said...

कहते हैं गिलहरी की ऐसी भावना देख कर ही भगवान श्री राम ने उसे स्नेह पूर्वक स्पर्श किया था.....
उसी के फलस्वरूप उसके शरीर पर सुंदर धारियाँ आज भी दिखती हैं....

 

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